हजारी प्रसाद द्विवेदी: हिंदी साहित्य के तेजस्वी पुरोधा

हजारी प्रसाद द्विवेदी : हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष

हजारी प्रसाद द्विवेदी

हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के ऐसे आलोक स्तंभ थे, जिनकी विद्वता, भाषा-संवेदनशीलता और सांस्कृतिक दृष्टि ने हिंदी को नई गरिमा और गहराई प्रदान की। वे न केवल एक महान निबंधकार थे, बल्कि भारतीय संस्कृति के इतिहास, दर्शन और परंपरा के भी गहरे ज्ञाता थे।

जन्म और प्रारंभिक जीवन

इनका जन्म 19 अगस्त 1907 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दुबे का छपरा गाँव में हुआ था। पंडित पिता और धार्मिक माँ के वातावरण में उनका बचपन साहित्यिक-संस्कृतिक प्रभाव में बीता।

शिक्षा

काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त कर वे भारतीय परंपरा, संस्कृति और साहित्य में पारंगत बने।

भाषा शैली

उनकी भाषा शुद्ध, संस्कृतनिष्ठ और भावप्रवण थी। वे तर्क, तथ्य और भावों का अनोखा संतुलन स्थापित करते थे। उपमाओं, दृष्टांतों और सांस्कृतिक प्रतीकों के साथ उनका लेखन एक गहन अनुभव बन जाता था।

प्रमुख रचनाएँ

  • बाणभट्ट की आत्मकथा
  • अनामदास का पोथा
  • चारुचंद्र लेखा
  • घर जोड़ने की माया
  • कबीर
  • नाथ संप्रदाय
  • सूर साहित्य
  • कल्पलता
  • अशोक के फूल
  • भारतीय साहित्य का इतिहास

साहित्यिक विशेषताएँ

  • दार्शनिक दृष्टिकोण
  • गंभीर विषयों की सहज व्याख्या
  • भारतीय परंपरा में आधुनिकता का समावेश
  • गहन सांस्कृतिक चेतना

शिक्षण और सेवाएँ

शांति निकेतन में रवींद्रनाथ ठाकुर के आमंत्रण पर हिंदी विभागाध्यक्ष बने। इसके बाद वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भी प्राध्यापक रहे। उन्होंने अनेक छात्रों को शोध, लेखन और सांस्कृतिक दृष्टि दी।

प्राप्त सम्मान

  • पद्म भूषण (1957)
  • साहित्य अकादमी फेलोशिप
  • मानद उपाधियाँ

निधन

हजारी प्रसाद द्विवेदी का निधन 19 मई 1979 को हुआ।

निष्कर्ष

हजारी प्रसाद द्विवेदी हिंदी साहित्य के एक ऐसे ज्योतिर्मय नक्षत्र थे, जिनकी रचनाएँ आज भी हमारी संस्कृति की गहराइयों में उतरने में सहायता करती हैं। उनका लेखन समय की सीमा से परे जाकर चेतना को जाग्रत करता है।

■ निबंध ■