
नीम करौली बाबा: एक दिव्य महापुरुष की अमर कथा
बीसवीं शताब्दी में भारत की भूमि पर अनेक संतों ने जन्म लिया, लेकिन कुछ संत ऐसे रहे जिन्होंने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा से स्पर्श किया। उन्हीं में से एक थे नीम करौली बाबा — जिन्हें भक्त प्रेम से "महाराज जी" कहकर पुकारते हैं।
प्रारंभिक जीवन
नीम करौली बाबा का जन्म लगभग वर्ष 1900 में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद ज़िले के अकबरपुर गांव में एक समृद्ध ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बचपन से ही वे साधु स्वभाव के थे। मात्र 11 वर्ष की आयु में विवाह हुआ, लेकिन अल्पायु में ही वे गृहस्थ जीवन से विमुख होकर साधना के मार्ग पर चल पड़े। बाद में परिवार के आग्रह पर लौटे और तीन संतानों के पिता बने, लेकिन अंततः उनका जीवन सेवा, त्याग और साधना को ही समर्पित रहा।
आध्यात्मिक यात्रा और नाम की कथा
महाराज जी ने पूरे भारतवर्ष का भ्रमण किया और कई स्थानों पर अलग-अलग नामों से पहचाने गए। एक घटना के अनुसार वे एक बार बिना टिकट रेल यात्रा कर रहे थे और जब उन्हें ट्रेन से उतारा गया, तो ट्रेन आगे नहीं बढ़ी। बाद में अधिकारियों ने क्षमा माँगी और उन्होंने कहा कि जहां उन्हें उतारा गया है, वहाँ स्टेशन बने — वही स्थान था नीम करौली, और वहीं से उनका नाम पड़ा “नीम करौली बाबा”।
साधना, चमत्कार और वैश्विक प्रभाव
बाबा को हनुमान जी का परम भक्त माना जाता है। वे सादगी में रहते थे लेकिन उनके चमत्कारों की कथाएं हजारों लोगों के अनुभव का हिस्सा हैं। भक्तों की मन की बात जानना, उन्हें समय से पहले संकट से बचा लेना, यह सब आम बातें थीं।
अमेरिका के प्रसिद्ध आध्यात्मिक लेखक रामदास (Be Here Now), कीर्तन गायक कृष्णदास, और Google के सह-संस्थापक लैरी पेज तक, नीम करौली बाबा के आध्यात्मिक प्रभाव से प्रभावित हुए। स्टीव जॉब्स और मार्क ज़ुकरबर्ग भी बाबा से प्रेरणा लेने भारत आए, यद्यपि जॉब्स बाबा से व्यक्तिगत रूप से नहीं मिल सके।
प्रमुख आश्रम
- कैंची धाम (नैनीताल): बाबा का सबसे प्रसिद्ध आश्रम जहाँ हर वर्ष 15 जून को विशाल भंडारे का आयोजन होता है।
- वृंदावन आश्रम: यही वह स्थान है जहाँ 11 सितंबर 1973 को बाबा ब्रह्मलीन हुए।
- ऋषिकेश आश्रम: गंगा तट पर स्थित, सिद्धि मां द्वारा स्थापित।
- लखनऊ, दिल्ली (मजनूं का टीला), फर्रुखाबाद: अन्य प्रमुख आश्रम।
- ताओस आश्रम, न्यू मैक्सिको (USA): पश्चिमी दुनिया में बाबा की शिक्षाओं का केंद्र।

सिद्धि मां: सेवा और त्याग की मूर्ति
सिद्धि मां, नीम करौली बाबा की सबसे प्रमुख और समर्पित शिष्या थीं। अल्मोड़ा में जन्मी सिद्धि मां ने पति के निधन के बाद अपना जीवन बाबा की सेवा में समर्पित कर दिया। बाबा के ब्रह्मलीन होने के बाद उन्होंने कैची धाम की पूरी जिम्मेदारी संभाली और 1980 में ऋषिकेश आश्रम की स्थापना की। 2017 में उनके निधन के बाद उनकी प्रतिमा भी बाबा के समीप स्थापित की गई।
ब्रह्मलीन होना
11 सितंबर 1973 को बाबा ने वृंदावन में अपने पार्थिव शरीर का त्याग किया। लेकिन आज भी लाखों श्रद्धालु उनकी उपस्थिति को अनुभव करते हैं, उनके मंदिरों में राम नाम की गूंज, हनुमान चालीसा की ध्वनि, और भक्तों की श्रद्धा यह प्रमाणित करती है कि वे आज भी जीवित हैं।
बाबा के प्रिय मंत्र
- ॐ हनुमते नमः – संकट से रक्षा करने वाला मंत्र
- ॐ श्री रामाय नमः – बाबा का जीवनदर्शन
- हनुमान चालीसा – बाबा की नित्य उपासना
नीम करौली बाबा की अमर वाणियाँ
- “सबका भला चाहो, तभी तुम्हारा भी भला होगा।”
- “राम नाम ही काफी है।”
- “सेवा सबसे बड़ा धर्म है।”
- “बिना माँगे जो दे, वही सच्चा दाता है।”
- “जो कुछ होता है, वह राम की इच्छा से होता है।”
- “ईश्वर के घर देर है, अंधेर नहीं।”
॥ जय श्री नीम करौली बाबा ॥