वाराणसी के कोतवाल: भगवान कालभैरव की रहस्यमयी कथा

वाराणसी के कोतवाल: भगवान कालभैरव की रहस्यमयी कथा और कालाष्टमी व्रत का महत्व  

श्री कालभैरववाराणसी : 16 जून 2025 

यह कथा लगभग 2500 वर्ष पूर्व की है, जब त्रिदेवों — ब्रह्मा, विष्णु और महेश — के स्वरूप, शक्तियों और कर्तव्यों का विस्तार वेदों और पुराणों में हो रहा था।

एक बार ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हुआ। इसे सुलझाने हेतु भगवान शिव ने एक अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट होकर कहा कि जो इस स्तंभ का आदि या अंत खोज लेगा, वही श्रेष्ठ माना जाएगा। विष्णु नीचे पाताल की ओर गए और लौटकर सत्य बोले, लेकिन ब्रह्मा ने झूठ कहा कि उन्होंने स्तंभ का शिखर देख लिया है। उन्होंने केतकी पुष्प से भी झूठी गवाही दिलवाई।

इस असत्य से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और अपने उग्र रूप कालभैरव को प्रकट किया। उन्होंने ब्रह्मा के उस पाँचवें सिर को काट डाला जिससे झूठ निकला था। इस कार्य के कारण उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लगा और ब्रह्मा का कटा सिर उनके हाथ से चिपक गया।

भगवान शिव ने आदेश दिया कि कालभैरव भिक्षाटन करें और जब तक वह दोष समाप्त न हो, नगर-नगर भ्रमण करें। कालभैरव कई तीर्थों में भटके लेकिन पाप नहीं छूटा।

अंततः वे काशी पहुँचे, जहाँ प्रवेश करते ही ब्रह्मा का सिर उनके हाथ से छूट गया और वे दोषमुक्त हो गए। तब शिवजी ने उन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया और कहा कि अब से काशी में बिना आपकी अनुमति के कोई मोक्ष नहीं पाएगा।

आज भी काशी में कालभैरव जी को न्याय और धर्म के रक्षक के रूप में पूजा जाता है। उनका वाहन कुत्ता माना जाता है और वहाँ के मंदिर में विशेष पूजन होता है।


कालाष्टमी का व्रत हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन काल भैरव की पूजा की जाती है, जो कि भगवान शिव के रौद्र रूप माने जाते हैं।

मान्यता है कि कालभैरव की पूजा करने से भय, दरिद्रता, मृत्युभय, रोग और शत्रु दोष समाप्त होता है।

विशेष रूप से मार्गशीर्ष माह की कृष्ण अष्टमी को कालभैरव जयंती मनाई जाती है, जो सबसे प्रमुख कालाष्टमी मानी जाती है। इस दिन कालभैरव जी के जन्म का पर्व पूरे भक्तिभाव से मनाया जाता है।


ॐ देवराजसेव्यमानपावनाङ्घ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम्
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥