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शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर साल मेले — सुखदेव थापर जयंती पर विशेष नमन

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🪔 अमर बलिदानी सुखदेव थापर पर निबंध 

शहीद सुखदेव थापर

■ प्रस्तावना:

भारत की आज़ादी की लड़ाई में अनेक वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी। ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी थे — सुखदेव थापर, जिनका नाम भारत के स्वर्णिम इतिहास में अमर शहीदों की सूची में हमेशा के लिए अंकित है। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में भारत माता की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया।

■ प्रारंभिक जीवन:

सुखदेव थापर का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना, पंजाब में हुआ था। वे एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार से थे। बचपन से ही वे देशभक्ति और न्याय की भावना से ओतप्रोत थे। उन्होंने लाहौर नेशनल कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उनकी मित्रता भगत सिंह और राजगुरु से हुई। यही मित्रता आगे चलकर एक क्रांतिकारी आंदोलन में बदल गई।

■ क्रांतिकारी गतिविधियाँ:

सुखदेव ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के माध्यम से देश में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ क्रांति की अलख जगाई। वे चाहते थे कि भारत में न केवल अंग्रेज़ों से आज़ादी मिले, बल्कि सामाजिक और आर्थिक बराबरी भी स्थापित हो।

उन्होंने युवाओं को देशभक्ति और क्रांति के लिए प्रेरित किया और अनेक गुप्त अभियानों का नेतृत्व किया।

■ लाहौर षड्यंत्र केस और बलिदान:

1928 में पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या के आरोप में सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु को गिरफ्तार किया गया। उन पर लाहौर षड्यंत्र केस चला और 23 मार्च 1931 को उन्हें फाँसी की सज़ा दी गई।

मात्र 23 वर्ष की आयु में उन्होंने देश के लिए हँसते-हँसते प्राण न्योछावर कर दिए। उनकी बहादुरी और साहस आज भी हर भारतीय के हृदय को गर्व से भर देता है।

■ सुखदेव की प्रेरणा:

सुखदेव का जीवन हमें सिखाता है कि देशप्रेम शब्दों से नहीं, कर्मों से होता है। उन्होंने न तो प्रसिद्धि चाही, न ही कोई पुरस्कार — उनका एकमात्र उद्देश्य था भारत माता की स्वतंत्रता

उनकी निडरता, विचारधारा और आत्मबलिदान आने वाली पीढ़ियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।

■ उपसंहार:

सुखदेव थापर एक ऐसा नाम है, जिसे भारत कभी नहीं भूल सकता। वे न केवल क्रांतिकारी थे, बल्कि एक महान विचारक भी थे। उनका जीवन और बलिदान हर युवा के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

"शहीद सुखदेव अमर रहें!"
जय हिंद! वंदे मातरम्!

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