जातिगत जनगणना बनाम आर्थिक गणना: सामाजिक न्याय की असली चाभी क्या है?

जातिगत जनगणना: सामाजिक न्याय की दिशा या सामाजिक संरचना में टकराव?

🗓️ 30 अप्रैल 2025 | ✍️ संपादकीय विशेष

हाल के समय में जातिगत जनगणना का मुद्दा फिर से चर्चा के केंद्र में है। यह बहस उतनी ही पुरानी है जितनी आरक्षण की व्यवस्था, और इसके पक्ष एवं विपक्ष में गहरी वैचारिक रेखाएँ खिंची हुई हैं। राजनीतिक गलियारों से लेकर अकादमिक जगत तक, यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या जातिगत आंकड़े सामाजिक न्याय को मजबूती देंगे या फिर समाज को और अधिक जातिगत खांचों में बाँट देंगे?

जातिगत जनगणना का इतिहास: कब और क्यों?

भारत में जनगणना की शुरुआत ब्रिटिश शासन के दौरान 1872 में हुई थी, हालांकि वह आंशिक थी। पहली पूर्ण जनगणना 1881 में हुई और तब से हर 10 वर्षों में जनगणना होती आ रही है। 1931 की जनगणना अंतिम बार थी जब सभी जातियों के विस्तृत आंकड़े दर्ज किए गए थे। इसके बाद केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) से संबंधित डेटा लिया जाता रहा, OBC (Other Backward Classes) की कोई आधिकारिक गिनती नहीं हुई।

  • 1872: भारत में पहली (अपूर्ण) जनगणना
  • 1881: पहली पूर्ण और व्यवस्थित जनगणना
  • 1931: अंतिम बार जातिगत आंकड़े दर्ज किए गए
  • 1951–2021: केवल SC/ST आंकड़े; OBC का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं

OBC जनसंख्या: अनुमान क्या कहते हैं?

हालांकि OBC की जनसंख्या को लेकर कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है, फिर भी विभिन्न संस्थानों और रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या में OBC वर्ग का हिस्सा 42% से 52% के बीच माना जाता है। SC वर्ग लगभग 16-17% और ST वर्ग लगभग 8-9% के करीब है। सामान्य वर्ग की संख्या 20-30% के बीच मानी जाती है। लेकिन ये केवल अनुमान हैं — और यही इस जनगणना की आवश्यकता को जन्म देता है।

जातिगत जनगणना क्या है?

सामान्य बोलचाल में जिसे हम 'जातिगत जनगणना' कहते हैं, वह तकनीकी रूप से 'सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग' (SEBC) की गणना है। अभी तक दशकीय जनगणनाओं में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आंकड़े दर्ज किए जाते रहे हैं। अन्य सभी को सामान्य वर्ग में गिन लिया जाता है। अब यह मांग उठ रही है कि OBC (अर्थात SEBC) वर्ग की जातियों की भी गणना की जाए।

जातिगत जनगणना के पक्ष में तर्क

जातिगत जनगणना के पक्ष में खड़े लोगों का कहना है कि यह समय की माँग है। यदि किसी सामाजिक वर्ग को आरक्षण व विकास योजनाओं में भागीदारी दी जा रही है, तो उसकी संख्या व सामाजिक स्थिति का आंकलन जरूरी है।

1. इससे यह जाना जा सकता है कि OBC वर्ग की वास्तविक स्थिति क्या है और उन्हें आबादी के अनुपात में क्या प्रतिनिधित्व मिल रहा है। 2. इससे सामाजिक न्याय की दिशा में समावेशी नीतियाँ बनाई जा सकेंगी। 3. सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी मामले में निर्देश दिया था कि OBC की स्थिति का समय-समय पर मूल्यांकन किया जाए।

"समय रहते किसी वर्ग की वंचना का मूल्यांकन न हो तो वह असंतोष में बदल जाता है, जो सामाजिक शांति के लिए घातक हो सकता है।"

विरोध में तर्क: क्या इससे जातिवाद और बढ़ेगा?

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि जातिगत आंकड़ों के राजनीतिक इस्तेमाल से जातिगत ध्रुवीकरण और प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। क्या हम समाज को और गहराई से बांटने की राह पर जा रहे हैं?

  • जाति की स्पष्ट परिभाषा और सीमाएं नहीं हैं, जिससे डेटा संग्रह में असंगतियाँ हो सकती हैं।
  • यह अस्मितावादी राजनीति को और बढ़ावा देगा, जिससे नीति नहीं बल्कि जाति सत्ता का खेल होगा।
  • आरक्षण को जातियों के टुकड़ों में बांटने से अंतहीन संघर्ष और असंतोष पैदा हो सकता है।

क्या आर्थिक गणना ज्यादा जरूरी है?

जातिगत पिछड़ापन नकारा नहीं जा सकता, लेकिन सिर्फ जाति से जुड़ी नीतियाँ आज के जटिल सामाजिक ढांचे के लिए अपर्याप्त हैं। गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी समस्याएं सभी वर्गों में फैली हैं। इसलिए कई विशेषज्ञों की राय है कि आर्थिक गणना जातिगत गणना से अधिक व्यावहारिक और जरूरी है।

अंतरराष्ट्रीय अनुभव और भारतीय यथार्थ

अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में जाति नहीं बल्कि नस्ल, रंग, भाषा और आप्रवासन आधारित डेटा संग्रह होता है। भारत में विविधता और असमानता का पैमाना बहुत गहरा है, लेकिन क्या हम आधुनिक राष्ट्र-राज्य के उस नागरिक-बोध की दिशा में जा पा रहे हैं, जहाँ शासन की इकाई केवल ‘नागरिक’ हो?

“क्या हम नागरिक की जगह फिर से जाति को शासन का आधार बना देंगे?” 

निष्कर्ष: समाधान संवाद से निकले

जातिगत जनगणना न तो पूरी तरह उचित कही जा सकती है और न ही पूरी तरह अनुपयुक्त। यह एक शक्तिशाली औजार है — इसका प्रयोग जिम्मेदारी और दूरदृष्टि से किया जाए तो यह सामाजिक न्याय की नींव को मज़बूत कर सकता है। लेकिन यदि इसका उपयोग सत्ता और अस्मिता की राजनीति के लिए किया गया, तो यह समाज को और अधिक विभाजित कर देगा।

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