Children’s Day 2024


बाल दिवस 
पंडित नेहरू का बच्चों के प्रति प्रेम

पंडित जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि बच्चे देश का भविष्य हैं।वह बच्चों को उनके धर्म, जाति, या आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना प्यार करते थे और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ते थे । उन्होंने हमेशा बच्चों के शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए नई योजनाएं बनाई। नेहरू जी का यह विश्वास था कि बच्चों को सही मार्गदर्शन और संसाधन मिलें ताकि वे आत्मनिर्भर और सशक्त नागरिक बन सकें।

बाल दिवस का महत्व

बाल दिवस का उद्देश्य बच्चों के प्रति प्यार और सम्मान को बढ़ावा देना है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि बच्चों के विकास के लिए सही अवसर और संसाधन उपलब्ध कराना जरूरी है। यह समाज की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों को एक सुरक्षित, स्वस्थ और प्रोत्साहक वातावरण प्रदान करे।

बाल दिवस का आयोजन

बाल दिवस पर विभिन्न स्कूलों, कॉलेजों और संगठनों द्वारा सांस्कृतिक और रचनात्मक गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। बच्चों के लिए निबंध लेखन, चित्रकला, नृत्य और गायन प्रतियोगिताएं होती हैं। इस दिन का मुख्य उद्देश्य बच्चों की रचनात्मकता को बढ़ावा देना और उन्हें अपने विचार व्यक्त करने का अवसर देना है।

2024 का विश्व बाल दिवस का थीम

विश्व बाल दिवस 2024 की थीम "हर बच्चे के लिए, हर अधिकार" है। यह सभी बच्चों को उनके मौलिक अधिकारों का आश्वासन देने के लिए प्रयासों का आह्वान करती है, जिसमें शिक्षा, भोजन, आवास, स्वच्छता और हानिकारक काम से सुरक्षा का अधिकार शामिल है।

बाल दिवस हमें यह याद दिलाता है कि बच्चों के प्रति हमारी जिम्मेदारियां केवल एक दिन की बात नहीं हैं, बल्कि हमें हमेशा उनके कल्याण के लिए काम करना चाहिए। इस दिन हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि हम बच्चों के भविष्य को सुरक्षित और उज्ज्वल बनाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।

पंडित जवाहरलाल नेहरू: एक अद्वितीय नेता का जीवन

पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहाबाद में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर निजी शिक्षकों से प्राप्त की। 15 वर्ष की उम्र में, वे इंग्लैंड चले गए, जहाँ उन्होंने हैरो स्कूल में दो साल बिताए और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। वहाँ से उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। 1912 में भारत लौटने के बाद, उन्होंने तुरंत राजनीति में कदम रखा और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया।

                                                            प्रारंभिक राजनीतिक गतिविधियाँ

नेहरू ने छात्र जीवन के दौरान ही विदेशी हुकूमत के अधीन देशों के स्वतंत्रता संघर्षों में रुचि ली। उन्होंने आयरलैंड में हुए सिनफेन आंदोलन में गहरी रुचि दिखाई। 1912 में, उन्होंने बांकीपुर सम्मेलन में एक प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया और 1919 में इलाहाबाद के होम रूल लीग के सचिव बने। 1916 में महात्मा गांधी से पहली बार मिलने के बाद, उन्होंने गांधी जी से प्रेरणा ली और 1920 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में पहले किसान मार्च का आयोजन किया।

असहयोग आंदोलन और जेल यात्रा

1920-22 के असहयोग आंदोलन के दौरान, नेहरू को दो बार जेल जाना पड़ा। सितंबर 1923 में, वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने। 1926 में उन्होंने यूरोप का दौरा किया, जिसमें इटली, स्विट्जरलैंड, इंग्लैंड, बेल्जियम, जर्मनी और रूस शामिल थे। बेल्जियम में, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में दीन देशों के सम्मेलन में भाग लिया।

स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान

1929 में, नेहरू भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के लाहौर सत्र के अध्यक्ष चुने गए, जिसका मुख्य लक्ष्य देश के लिए पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना था। 1930-35 के दौरान, नमक सत्याग्रह और अन्य आंदोलनों के कारण उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। उन्होंने 14 फ़रवरी 1935 को अल्मोड़ा जेल में अपनी आत्मकथा का लेखन कार्य पूरा किया।

'भारत छोड़ो' आंदोलन

31 अक्टूबर 1940 को, नेहरू ने व्यक्तिगत सत्याग्रह किया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार किया गया। 7 अगस्त 1942 को मुंबई में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में, उन्होंने ऐतिहासिक संकल्प 'भारत छोड़ो' को कार्यान्वित करने का लक्ष्य निर्धारित किया। 8 अगस्त 1942 को, उन्हें अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर अहमदनगर किला ले जाया गया। यह उनका अंतिम जेल यात्रा थी और इसी दौरान उन्होंने सबसे लंबे समय तक जेल में बिताया।

स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री

नेहरू ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया। उन्होंने स्वतंत्रता के बाद देश के विकास के लिए कई योजनाएँ बनाई और आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

निष्कर्ष

पंडित जवाहरलाल नेहरू का जीवन न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि शिक्षा, समर्पण और नेतृत्व के द्वारा किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। उनका योगदान आज भी भारतीय राजनीति और समाज में महत्वपूर्ण है, और वे हमेशा बच्चों के चाचा के रूप में याद किए जाएंगे।