मुख्यमंत्री जी! अब तो सुनिए इन अल्प मानदेय कर्मियों की वेदना, जिनकी ज़िंदगी ठहर सी गई है

15 साल से सेवा में, फिर भी उपेक्षित: कब सुनेगी सरकार अल्प मानदेय कर्मियों की चीख?

दिनांक : 14 जून 2025 | स्थान : उत्तर प्रदेश

कभी सोचता हूँ बच्चों से कह दूँ – बेटा अब मत पढ़ो, क्योंकि तुम्हारे बाप के पास किताबों के पैसे नहीं हैं...” ये शब्द हैं उत्तर प्रदेश के एक शिक्षा मित्र के, जो पिछले 15 वर्षों से अपने फर्ज को निभा रहे हैं, मगर आज खुद को समाज और परिवार से छुपाते फिरते हैं।

वीडियो में उनकी आवाज कांप रही थी, आँखें नम थीं और शब्दों में वह टीस थी जिसे कोई भी संवेदनशील सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकती। वे कहते हैं — “इतनी कम तनख्वाह में कैसे अपने बच्चों को स्कूल भेजें? अगर किसी तरह आठवीं तक पढ़ भी गए, तो उच्च शिक्षा का खर्च कैसे उठाएं?”

उन्होंने बताया कि माननीय प्रधानमंत्री द्वारा मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी के लिए तय मानकों से भी कम भुगतान उन्हें मिल रहा है। “ये तो मजदूरी भी नहीं, हमारी मजबूरी है” – शिक्षा मित्र की इन पंक्तियों में उस हजारों कर्मियों की पीड़ा झलकती है, जिनका भविष्य अंधकार में है।

सिर्फ ये शिक्षा मित्र ही नहीं, राज्य सरकार के सैकड़ों विभागों में कार्यरत लाखों कर्मचारी, जो वर्षों से संविदा पर या मानदेय पर सेवा दे रहे हैं — आज अपने भविष्य को लेकर गहरी चिंता में डूबे हैं।

15 से अधिक वर्षों की सेवा के बाद भी न स्थायित्व मिला, न सम्मानजनक वेतन। क्या यही है एक कर्मठ कर्मचारी का इनाम? क्या सरकारें सिर्फ घोषणाओं और विज्ञापनों में संवेदनशीलता दिखाएंगी?

इन कर्मियों की पीड़ा सिर्फ वेतन की नहीं है, यह पीड़ा है उस अनदेखे अपमान की, जो हर दिन उन्हें उनके बच्चों की आँखों में झांकते समय महसूस होता है।

“हम अपने माता-पिता, भाई-बंधुओं और समाज की आँखों में झांकने की हिम्मत नहीं रखते...” ये शब्द अब सिर्फ एक शिक्षा मित्र की आवाज नहीं हैं, ये हज़ारों अल्प मानदेय कर्मियों की चीख हैं — जो सीधी सरकार के कानों तक पहुँचनी चाहिए।

उत्तर प्रदेश सरकार से निवेदन है कि ऐसे लाखों कर्मचारियों के मानवाधिकार, सम्मानजनक वेतन और भविष्य की सुरक्षा को प्राथमिकता दें। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब यही कर्मठ जनशक्ति टूट जाएगी — और तब सिर्फ सरकारी फाइलों में कुछ सूखे आँकड़े ही बचेंगे।

सरकार से आग्रह: कृपया इन सच्चे सेवकों की आवाज़ सुनी जाए। ये केवल कर्मचारी नहीं — यह राष्ट्र की नींव हैं।