राधा कुंड (कृष्ण कुंड) का इतिहास – Radha Kund History in Hindi
राधा कुंड और श्याम कुंड गोवर्धन पर्वत के पास स्थित दो अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल हैं। इन कुंडों का उल्लेख अनेक पुराणों में मिलता है और यह स्थान श्री राधा-कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा हुआ है।
इतिहास व कथा
जब कंस ने श्रीकृष्ण का वध करने के लिए अरिष्टासुर राक्षस को भेजा, तो उसने बछड़े का रूप लेकर ग्वालों को मारना शुरू किया। श्रीकृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसका वध किया। लेकिन राधा रानी ने कहा कि उन्होंने गोवंश की हत्या की है, इसलिए उन्हें पाप लगा है।
श्रीकृष्ण ने पाप से मुक्ति के लिए वहीँ ज़मीन पर जोर से पैर पटका, और सभी तीर्थों का आह्वान किया। वहाँ श्याम कुंड की रचना हुई, जहाँ उन्होंने स्नान किया। जवाब में, राधा रानी ने अपनी सखियों के साथ मिलकर अपनी चूड़ियों से एक कुंड बनाया और उसमें मानसी गंगा का जल भरा — यह बना राधा कुंड।
पुराणों के अनुसार, राधा कुंड में स्नान करने से समस्त पाप समाप्त होते हैं और प्रेम की परम अवस्था प्राप्त होती है। श्री चैतन्य महाप्रभु ने भी इसकी महिमा को स्वयं उजागर किया।
विशेष मान्यताएँ
- बहुलाष्टमी की रात को लाखों श्रद्धालु यहाँ स्नान करते हैं।
- कहा जाता है कि अहोई अष्टमी पर यहाँ स्नान करने से निःसंतान दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है।
- यह कुंड श्री राधा-कृष्ण की मध्यान्ह लीला स्थली भी है।
तीर्थ स्थान विवरण
राधा कुंड गोवर्धन पर्वत से लगभग 5 किलोमीटर, और मथुरा एवं वृंदावन से करीब 14 मील दूर स्थित है। यह स्थल तीर्थ यात्रियों और भजनानंदियों के लिए अत्यंत प्रिय है।
यहाँ हर वर्ष अक्टूबर-नवंबर में भव्य बहुलाष्टमी मेला आयोजित होता है जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं।
नोट: इस लेख में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं एवं पुराणों पर आधारित है।