हर बच्चा ख़ास होता है: 'तारे ज़मीन पर' से सीखने लायक कहानी
फिल्म: तारे ज़मीन पर
निर्देशक: आमिर खान
मुख्य किरदार: ईशान अवस्थी और राम शंकर निकुंभ
वर्ष: 2007

बचपन वो दौर होता है जहां कल्पनाएं खुले आसमान में उड़ती हैं। लेकिन जब समाज और स्कूल उस उड़ान को रोकने लगें, तो एक बच्चा खुद को अकेला और बेबस महसूस करने लगता है। ‘तारे ज़मीन पर’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक संवेदनशील दृष्टिकोण है — एक ऐसा सच जो अक्सर अनसुना रह जाता है।
👦 ईशान अवस्थी: जिसे कोई समझ नहीं पाया
ईशान अवस्थी, 8 साल का बच्चा, जो पढ़ाई में कमजोर है लेकिन उसकी कल्पनाशक्ति अपार है। वह dyslexia नाम की स्थिति से जूझ रहा होता है — जिसमें शब्द और अक्षर उलझे दिखते हैं। लेकिन शिक्षक और माता-पिता उसे आलसी, नालायक और जिद्दी मानते हैं। उसे बोर्डिंग स्कूल भेज दिया जाता है, जहां वह और भी टूट जाता है।
🎨 उम्मीद की रौशनी: राम शंकर निकुंभ की एंट्री
स्कूल में एक नया आर्ट टीचर आता है — राम शंकर निकुंभ (आमिर खान)। वो सिर्फ पढ़ाते नहीं, बच्चों को समझते भी हैं। उन्हें ईशान की पीड़ा नजर आती है और वो उसकी रचनात्मकता को फिर से जगाने की कोशिश करते हैं।
🖼️ कला बनी आत्मा की आवाज़
निकुंभ सर ईशान के भीतर छिपे कलाकार को बाहर लाते हैं। धीरे-धीरे वह फिर से मुस्कुराने लगता है, रंगों से दोस्ती करता है और पेंटिंग प्रतियोगिता जीतकर सबको चौंका देता है। यह जीत सिर्फ कागज़ पर नहीं थी — यह आत्मा की वापसी थी।
💡 इस फिल्म से क्या सीखें?
- हर बच्चा अलग होता है — हमें उसे समझने की ज़रूरत है, बदलने की नहीं।
- अंक और रिपोर्ट कार्ड सब कुछ नहीं होते — संवेदनशीलता ज़रूरी है।
- शिक्षक और माता-पिता को पहले ‘सुनना’ और ‘समझना’ आना चाहिए।
“हर बच्चा एक सितारा है। बस ज़रूरत है उसे अपनी रौशनी बिखेरने की आज़ादी देने की।”
‘तारे ज़मीन पर’ एक ऐसा आईना है जो हमें अपने आसपास के बच्चों को देखने का तरीका बदलने की सीख देता है। आइए, हम भी उन बच्चों के लिए वो 'निकुंभ सर' बनें जो सिर्फ सिखाएं नहीं, समझें भी।