स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर: जीवन संघर्ष, योगदान
विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागूर गांव में हुआ। बचपन से ही उनमें देशभक्ति की भावना गहरी थी। उन्होंने मुंबई में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की और बाद में इंग्लैंड जाकर कानून की पढ़ाई की। वहीं उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी की। सावरकर ने "भारत माता की जय" का नारा दिया और हिन्दुत्व के विचार को जन्म दिया, जिसने भारतीय संस्कृति और पहचान को नई दिशा दी। उन्होंने 1909 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम की साजिश के आरोप में गिरफ्तारी सहन की और आजीवन कारावास की सजा पाई। उनकी सजा अंडमान के सेल्युलर जेल में रही, जिसे कालापानी भी कहा जाता है। जेल में रहते हुए उन्होंने अपने विचारों को लिखा और कई महत्वपूर्ण पुस्तकें, जैसे "1857 का स्वतंत्रता संग्राम" और "हिंदुत्व: कौन हिंदू?" की रचना की। सावरकर के विचारों ने हिंदू समाज में एक नई चेतना जगाई और लोगों को संगठित होने के लिए प्रेरित किया। हालांकि, उनके हिंदुत्व के विचार विवादों में भी रहे और कुछ लोगों ने उन्हें कट्टरपंथी माना। 1924 में जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने हिंदू महासभा के माध्यम से राजनीतिक गतिविधियों में भाग लिया। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद उन पर षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगा, लेकिन कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। अपने अंतिम समय में सावरकर ने आध्यात्मिक जीवन अपनाया और 26 फरवरी 1966 को उनका निधन हुआ। उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें सम्मानित किया है। अंडमान में उनके नाम पर एक जेल ब्लॉक और पोर्ट ब्लेयर हवाई अड्डा रखा गया है। विनायक दामोदर सावरकर का जीवन देशभक्ति, बलिदान और विचारों की शक्ति का प्रतीक है जो आज भी युवाओं के लिए प्रेरणा है।
'राष्ट्रहित सर्वोपरि' के मंत्र को जीने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी, हिंदुत्व विचारक और माँ भारती के सच्चे सपूत 'स्वातंत्र्यवीर' विनायक दामोदर सावरकर की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन। उनका बलिदान, ध्येयनिष्ठा और राष्ट्र के प्रति समर्पण आज भी हमें प्रेरणा देता है।