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"11 साल तक बच्चों को पढ़ाया, पर खुद के घर का चूल्हा नहीं जला पाए — मजबूरी में छोड़ दी शिक्षक की कुर्सी!"

11 वर्षों तक सेवा देने वाले शिक्षा मित्र ने वेतन की बेबसी में त्यागा पद

🗓️ 30 अप्रैल 2025 | ✍️ रिपोर्ट: 

शिक्षा मित्र की प्रतीकात्मक तस्वीर

फोटो: शिक्षा मित्र आंदोलन (साभार)

रामपुर जिले के सालपुर क्षेत्र में नियुक्त एक शिक्षा मित्र अब्दुल कादिर ने 11 वर्षों तक सेवा देने के बाद अंततः अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। उनका आरोप है कि पूरी योग्यता के बावजूद सरकार ने न तो उन्हें स्थायित्व दिया, न ही सम्मानजनक मानदेय। महंगाई के इस दौर में उनका वेतन इतना कम था कि न बच्चों की पढ़ाई संभल रही थी, न ही बुज़ुर्ग माता-पिता की दवाओं का खर्च

कादिर ने त्यागपत्र में लिखा कि वह चाह कर भी अपने वृद्ध पिता के झुकते कंधों का सहारा नहीं बन पाए। बहन की ज़िम्मेदारियों में साथ नहीं दे सके। यह वेदना सिर्फ एक शिक्षक की नहीं, बल्कि पूरे उस वर्ग की है जो वर्षों से शिक्षा मित्र के नाम पर अनदेखा और शोषित होता रहा है।

शिक्षा मित्र विरोध

विरोध प्रदर्शन की एक तस्वीर (स्रोत: ट्विटर)

“इतनी कम तनख्वाह में अपने बच्चों को स्कूल भेजना मुश्किल था। मां की दवा हर महीने टालनी पड़ती थी, पिता की कमर झुकी जा रही थी — पर बेटा कुछ कर नहीं पा रहा था। जब अपने ही परिवार की आँखों में आँसू हों तो स्कूल की ब्लैकबोर्ड पर क्या लिखें?”

त्यागपत्र की प्रति जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी और खंड शिक्षा अधिकारी को भेजी गई है। इसमें शीमा रानी नाम की दूसरी कर्मचारी का भी उल्लेख है, जिन्होंने या तो सत्यापन किया या समर्थन दिया। कादिर ने यह भी उल्लेख किया कि इतनी आर्थिक तंगी में रहते हुए किसी अन्य कार्य की अनुमति न होना और सरकारी उपेक्षा ने उनका मनोबल तोड़ दिया।

यह घटना न सिर्फ शिक्षा मित्रों की सामाजिक स्थिति पर सवाल खड़े करती है, बल्कि सरकार की नीतियों पर भी। जो शिक्षक बच्चों को भविष्य का रास्ता दिखा रहे हैं, वो खुद अपने ही घर का चूल्हा कैसे जलाएं?

यह त्यागपत्र एक दस्तावेज़ नहीं — एक चीख है। एक शिक्षक की जो इतनी मजबूर हो चुकी है कि वह ज्ञान का दीपक छोड़कर अंधेरे में लौटने को विवश है। और शायद, जो भी इस पीड़ा को सुने — उसका दिल भी भीग जाए।

🛑 माननीय मुख्यमंत्री जी,

यह सिर्फ अब्दुल कादिर की वेदना नहीं है — प्रदेश के हजारों-लाखों शिक्षा मित्र और अल्प मानदेय पर कार्यरत कर्मी आज इसी असहायता में जी रहे हैं। वे न अपने बच्चों की शिक्षा संभाल पा रहे हैं, न माता-पिता की दवा, और न बहनों की ज़िम्मेदारियाँ निभा पा रहे हैं।

माननीय मुख्यमंत्री जी से अपील है कि इस गहरे मानवीय संकट को समझें और संवेदनशीलता के साथ विचार करें। शिक्षा मित्रों और ऐसे सभी कर्मियों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए स्थायी और सम्मानजनक नीति बनाई जाए, जिससे किसी भी परिवार को बिखरने से बचाया जा सके।

संपादकीय अपील


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