UP में आउटसोर्स सेवा निगम का प्रस्ताव मुख्य सचिव के मार्गदर्शन के बाद मुख्यमंत्री को भेजा जाएगा, कैबिनेट में मिल सकती है मंजूरी"

UP के सरकारी विभागों में वर्षों से कार्यरत आउटसोर्स कर्मियों को बड़ी राहत, निगम करेगा EPF-ESI और बीमा का प्रबंधन

लखनऊ।  21 मई –उत्तर प्रदेश में सरकारी विभागों में काम कर रहे आउटसोर्स कर्मचारियों को जल्द बड़ी राहत मिलने जा रही है। राज्य सरकार ‘उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम’ का गठन करने जा रही है, जो ईपीएफ, ईएसआई और बीमा जैसे मामलों का प्रबंधन करेगा। इस निगम के आने के बाद कर्मचारियों को कई तरह की सामाजिक सुरक्षा मिलेगी और उनका शोषण भी रोका जा सकेगा।

निगम कर्मचारियों की चिकित्सा सुविधा, अवकाश और भत्तों के प्रबंधन की जिम्मेदारी भी संभालेगा। दुर्घटना की स्थिति में कर्मचारियों के परिजनों को 30 लाख रुपये तक की सहायता राशि दी जा सकेगी। इसके अलावा कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन 20 हजार रुपये तक तय किए जाने की संभावना है।

हालांकि मानदेय का भुगतान अब भी पूर्व की तरह आउटसोर्स एजेंसियों के माध्यम से ही होगा, लेकिन इसके समयबद्ध और पारदर्शी भुगतान की निगरानी अब निगम करेगा। एजेंसियों को यह अधिकार नहीं होगा कि वे अपने स्तर पर किसी कर्मचारी को हटा सकें।

सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा प्रस्ताव परामर्शी विभागों को भेजा गया था, जिनमें से अधिकांश ने अपनी सहमति दे दी है। अब प्रस्ताव मुख्य सचिव के मार्गदर्शन में मुख्यमंत्री के सामने जाएगा और वहां से स्वीकृति मिलने पर कैबिनेट में रखा जाएगा। निगम के माध्यम से सेवायोजन पोर्टल पर भर्तियां होंगी, हालांकि चतुर्थ श्रेणी के लिए अलग व्यवस्था रखी जाएगी।

गौरतलब है कि बीते 14-15 वर्षों से राज्य में अधिकतर विभागों में आउटसोर्सिंग एजेंसियों का ही वर्चस्व रहा है। प्रशासनिक अधिकारी भली-भांति जानते हैं कि अधिकांश एजेंसियां कर्मचारियों के मानदेय में कटौती करती हैं, हर वर्ष रिन्युअल के नाम पर रिश्वत वसूली जाती है और कर्मचारियों का ईपीएफ तो जमा ही नहीं किया जाता। यहाँ तक कि लगभग सभी एजेंसियों द्वारा जीएसटी तक जमा नहीं की जाती — इसे सीधे लूट लिया जाता है, और सरकारी राजस्व की चोरी की कोई चिंता नहीं की जाती

जनपदीय स्तर पर फर्मों के चयन से पहले एक शपथ पत्र भी भरवाया जाता है, जिसमें यह स्पष्ट होता है कि जब तक सेवा प्रदाता एजेंसी पूर्व माह के कर्मचारियों के मानदेय और सभी कटौतियों (EPF, ESI, GST) की भुगतान रसीद नहीं प्रस्तुत करती, तब तक अगले माह का बजट नहीं जारी किया जाएगा। इसके बावजूद फर्में खुलेआम लूट मचाए हुए हैं, और अफसर आंखें मूंदे बैठे हैं।

ऐसी स्थिति में यह अपेक्षित है कि फर्मों द्वारा किए गए इन कृत्यों पर संबंधित अधिकारियों द्वारा एफआईआर दर्ज कराते हुए उन्हें ब्लैकलिस्ट किया जाए, लेकिन इसके बजाय उन्हें महज नोटिस देकर छोड़ दिया जाता है। इसके बाद दूसरी फर्म को मनमाफिक तरीके से रखा जाता है और उससे सिक्योरिटी मनी के नाम पर कमीशन लिया जाता है।

चौंकाने वाली बात यह है कि प्रशासनिक विभाग इन सभी गड़बड़ियों की जानकारी होने के बावजूद, कर्मचारियों की शिकायतें समाचार चैनलों और सोशल मीडिया के माध्यम से प्राप्त होने के बाद भी, ऊपरी स्तर से कमीशन लेकर फर्मों का चयन कर देते हैं।

ऐसे में आवश्यक है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी स्वयं इस पूरे मामले को संज्ञान में लें और दोषी एजेंसियों एवं अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करें।