
हिन्दी पत्रकारिता दिवस: एक गौरवशाली विरासत की स्मृति
Published Date: 30-05-2025
हृदय की गहराइयों से शुभकामनाएँ उन सभी को, जो शब्दों से सत्य के दीप जलाते हैं। वे मार्गदर्शक, अग्रज, साथी और नवांकुर पत्रकार जो अपने अपने ढंग से हिन्दी की सेवा कर रहे हैं — आज का दिन आप सबका है।
सन् 1826 का वह दिन जब कलकत्ता की छांव तले एक वकील ने अखबार नहीं, बल्कि साहस छापा था। नाम था — उदन्त मार्तण्ड, और उसके रचयिता — पण्डित जुगल किशोर शुक्ल। हिन्दी भाषा को जब कोई पत्रकारिता का औजार नहीं मानता था, तब उन्होंने अपने सीमित साधनों में एक असंभव कार्य को संभव किया। उस समय हिन्दुस्तान के अखबार अंग्रेजी, फ़ारसी, उर्दू और बांग्ला के आलावा कुछ जानते ही न थे। हिन्दी बोलने वाले बहुत थे, पर लिखने वाला कोई न था।
उदन्त मार्तण्ड साप्ताहिक था, मंगलवार को निकलता था, और उसमें शब्द नहीं, जज़्बात होते थे। ब्रज और अवधी के मीठे तेवर उसमें झलकते थे। पर रास्ता आसान न था। पाठक थे कम, खर्चा था अधिक, और अंग्रेजी राज आंखें तरेर रहा था। डाक में रियायत नहीं मिली, आर्थिक बोझ बढ़ा और एक दिन वह अखबार बंद हो गया — कुल 79 अंक छप सके। लेकिन जो आग जलाई गई, वो बुझी नहीं।
उसी लौ में आज भी हिन्दी पत्रकारिता अपनी बात कहती है। तब अखबार हथियार थे, आज भी वही बात है — बस युद्ध के तरीके बदल गए हैं। जो शुरुआत कभी कलकत्ता से हुई थी, वह अब गांव-कस्बों से होते हुए डिजिटल दुनिया तक पहुँच चुकी है। लेकिन हर बार जब कोई पत्रकार सत्य लिखता है, तो कहीं न कहीं पंडित जुगल किशोर मुस्कुराते हैं।
आज 30 मई है — वही दिन, जब हिन्दी ने पहली बार अपने नाम की दस्तक दी थी। यह दिन तारीख़ नहीं, तहज़ीब है; यह स्मरण नहीं, सम्मान है।
जो लोग शब्दों के सिपाही हैं, कलम के योद्धा हैं — उनके लिए यह दिन एक प्रण है कि सत्य के पथ पर, हिन्दी की शक्ति से, जन के लिए जिया जाए।
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